RAJPUROHIT

Welcome the the world of RajPurohits - Jai Raghunathji Ri Saa

Param Shradhya Shri Shri 1008 Shri Khetaramji Maharaj Saheb

 
Brahmavatar Sant Shri 1008 Khetaram Ji Maharaj
"Sun of Rajpurohit Samaj"
 
Birth Date April 22, 1912 ( Vikram Samavat 1969 Vaishakh Sudi Pancham, Monday)
Father Shri. Shersingh Ji Rajpurohit (Udesh)
Mother Shrimati. Sanagari Devi
Birth Place Khed Village 
Tehsil Sanchour, District - Jalore (State)
Birth Name Khetaram
Vairagya At age of 12 Years.
Guru Shri Ganeshanandan Ji Maharaj
Specialty
Towards Jeeva Daya (Protection of Lives)
To be together on one stage to Rajpurohit Samaj to become introduce to International Level. 
Vachan Siddha Mahapurush in Kalayug, 
Many Magics Showing, Ghor Tapaswi, Bramhavatar.
Established Bramhaji Temple at Aasotara.
May 20, 1961 Bhoomi Pujan Neev of Main Door ( Vikram Samavat 2018 Vaishakh Sudi Pancham Saturday).
April 28, 1965 Bhoomi Pujan Neev of Bramhaji's Temple ( Vikram Samavat 2020 Vaishakh Sudi Pancham)
Established Bramhaji Temple at Aasotara to purpose of Economical Help All Money comes from Rajpurohit Samaj.
May 6, 1984 "Pran Pratishtha Mahotsav" of Temple ( Vikram Samavat 2041 Vaishakh Sudi Pancham Sunday ).
May 7, 1984 Bramhalin on Monday on Afternoon 12:36 Bramhadham Asotara ( Vikram Samavat 2020 Vaishakh Sudi 6 ).

 
श्री खेतेश्वर भगवान का संिक्षप्त परिचय
श्री खेतेश्वर भगवान का संिक्षप्त पिरचय महिर्ष उलक के गौत्र प्रवर्तक-''उदेश'' कुल में आवरण भारतीय इितहास में ऐसे अगिणत जीवन भरे पडे हैं। िजनके सम्मुख आिद शिक्त ने अपनी सम्पूर्ण शिक्त से भरपूर िदव्य तथा तेजस्वी आत्माओं का अवरतण आध्याित्मक पिवत्र भूिम गौरव से अिभमिण्डत रत्न गर्भा भारत भूिम आिद अलंकारों से जिडत व पिवत्र भूिम पर होता रहा हैं। परमेश्वर की चमत्कािरक दैिवक शिक्त तथा पिवत्र तेजस्वी आत्माओं का अवरण होने का श्रेय भारत भूिम को अनेको बार िमलता रहा हैं। संदर्भ में यहा की संस्कृित आज भी पुकार रही हैं। इतना ही नही समय-समय पर हमारे समाज को सुसस्कृित, पिवत्र और प्रेममय बनाने की अद्भुत क्षमता तथा सामर्थ रखने वाली आिद-शिक्त के प्रकाश-पुंज प्रितिनिधयों के रुप में अवतिरत हुए हैं।
समाज में िजन्हौने िनराशामय जीवन को आशामय बनाया, नािस्तक व्यिक्तयों में पिवत्र आिस्तकता का ज्ञान कराया, अन्धकारमय जीवन में ज्योित जगाकर प्रकािशत िकया। ऐसी पावन धरती िदव्य आत्माओं से कभी िरक्त नही रही। इन्हीं पिवत्र आत्माओं में से एक थे युग प्रेरक श्री खेतेश्वर भगवान िजनकी अद्भकुत चमत्कारी दैिवकशिक्त, सामािजक चैतन्य शिक्त ब्रहा की साकार शिक्त ब्रहा आनन्द का साकार दर्शन जीवन दान की अद्भुत जीवन संजीवनी शिक्त आिद असीम शिक्तयों को संजोग स्वरुप राजपुरोिहत समाज में गौतम वंशीय महिर्ष उलक की गौत्र प्रवर्तक वंशावली के 'उदेश' कुल में अपतरण हुआ। श्री खेतेश्वर जाित धर्म से श्पर उठकर प्रत्येक वर्ग में स्नेह के पुजारी रहे। संदर्भ में आज भी उनके प्रित सभी संप्रदायो के संतो, महन्तो व जन साधारण आिद की अटूट आस्था देखने को िमलती है। दीनों के प्रित अित व्याकुलता एंव जन साधारण के प्रित उनके जीवन का मुख्य गुण सामने आता हैं।
राजस्थान में बाडमेर िजले के शहर बालोतरा से लगभग दस िकलोमीटर दूर गढ िसवाडा रोड पर िदनांक 5 मई, 1961 को गांव आसोतरा के पास वर्तमान ब्रहा धाम असोतरा के ब्रहा मिन्दर की नीव िदन को ठीक 12बजे अपने कर कमलो से रखी। िजसका शुभ मुहूत स्वंम आधािरत था। ब्रहा की प्रितमा के स्नान का पिवत्र जल भूिम के श्पर नही िबखरे िजसके संदर्भ में उन्होने प्रितमा से पाताल तक जल िवर्सजन के िलए स्वंयं की तकिनक से लम्बी पाईप लाईन लगावाई। 23 वर्षा तक चले िनिर्वहन इस मिन्दर िनमार्ण में राजस्थान की सूर्य नगरी जोधपुर के छीतर पत्थर को तलाश कर स्वंयं के कठोर पिरश्रम से िबना िकसी नक्शा तथा नक्शानवेश के 44 खम्भों पर आधािरत दो िवशाल गुम्बजों के पिश्चम में एक िवशालकाय िशखर गुम्बज तथा उतर-दिक्षण में पांच-पांच, कुल दस छोटी गुम्बज नुमा िशखाएं, हाथ की सुन्दर कारीगरी की अनेक कला कृितयां िजनकी तलाश की सफाई व अनोखे आकारो में मंिडत प्रितमायें से जुडा पिवत्र व शान्त वातावण इस िवशाल काय ब्रम्हा मिन्दर के एक दृढ संकंल्पी चिरतामृत का समर्पण दर्शनार्थी को आकिर्षत िकए िबना नही रहता। ब्रम्हाधाम आसोतरा के ब्रहा मिन्दर का िनर्माण कार्य पूर्णकर श्री खेतेश्वर ने िदनांक 5 मई, 1984 को सृिष्ट रिचता जगत िपता भगवान ब्रम्हाजी की भव्य मूर्ती को अपने कर कमलो से िविध वत प्रितिष्ठत िकया। प्राण प्रितष्ठा महोत्सव के िदन महाशािन्त यज्ञािद कार्यक्रम करवाये गये। इसी पुनीत अवसर पर लगभग ढाई हजार से भी ज्यादा संत महात्माओं ने भाग िलया। तथा लगभग ढाई लाख से भी ज्यादा श्रद्वालु भक्तजनों ने इस िवराट पर्व का दर्शन लाभ उठाकर भोजन प्रसाद ग्रहण िकया भोजन प्रसाद कार्यक्रम तो उस िदन से िन:शुल्क चालु हैं। िजस िदन उक्त मिन्दर की नीव का पहला पत्थर धरती की गोद में समिर्पत हुआ। वही पत्थर वर्तमान में आज िदन तक तकरीबन तीस वर्षो से लाखों श्रद्वालु भक्तो को िन:शुल्क भोजन प्रसाद दे चुका है। तथा भविष्य में भी देता रहेगा। ऐसे िवगन की घोषणा का स्वरुप युग प्रेरक श्री खेतेश्वर भगवान ने ही बनाया था। जो आज भी पूर्ण रुप से चल रहा हैं। आम बस्ती से मीलों दुर जंगल की सन-सत्राजी हवाओं तथा मखमली रेत के गुलाबी टीबों के बीच प्रतिष्ठा िदवस की वह मनमोहनी रात्री का समय क्रित्रम िबजली की जग मगाहट को फूदक-फूदक कर नृत्य करती रोशनी से ऐसे सलग रही थी जैसे धरती पर देव राज्य स्वर्ग उतर आया हों। प्रात:काल की सुन्दरीयां भोंर में पक्षियों की चहचहाट की मधुर वाद्य वेला दर्शनार्थीं श्रद्वालुओं के हदय कमलों को मन्त्र मुग्ध सा कर देती हैं। श्री खेतेश्वर ने प्राण प्रितष्ठा महोत्सव के दूसरे िदन 6 मई, 1984 को लाखों दर्शनािर्थयों के बीच मूिर्त प्रतिष्ठा के 24 घन्टे पशचात िदन को ठीक 12बजे साधारण जन के िलये एक प्रकार से वज्रपात सा लगा।
अब श्री खेतेश्वर सृिष्ट कर्ता ब्रम्हाजी के सम्मुख जगत कल्याण की मंगल कामना करते हुए अपना अवलोिकक नश्वर शरीर त्याग कर ब्रहालीन हो गए। आिद शिक्त के िवधान की िवडमना इस िवलक्षण्यी दृश्य से वहा उपिस्थत श्रद्वालु भाव िवभोर होकर श्री खेतेश्वर भगवान की जय जयकार के उद्घोषों से आकाशीय वातावरण को गूंजायमान करने लगे। तत्पशचात उनका पिवत्र नाश्वान शरीर सनातन धर्म की िहन्दू सस्कृित के अनुसार तीर तलवार, भालो, ढालो, की सुरक्षा तथा साष्टांग प्रमाण नौपत व नंगारों व मृदंगन के साथ मोक्ष प्रिप्त राम नाम धून से सारा वातावरण एक मसिणए वैराग्य का स्वरुप धारण करके अिग्न को समिर्पत िकया गया। चन्दन, काष्ठ, श्रीफल, नािरयल, तथा घृत आिद की अिन्तम संस्कािरक आहुितया के मंन्त्रों से वैराग्य वातावरण ने तत्वों से जिडत देिहक पुतले को अिग्न में, जल में, वायु में, आकाश में व पृथ्वी में पृथक-पृथक िवलय का वोध कराया। जो एक ईश्वरीय शिक्त स्वरुप पिवत्र आत्मा िवश्व शािन्त की साधना में अमृत को प्राप्त हुई। ऐसी महान आत्मा को सत् सत् वन्दन! प्रित वर्ष युग प्रेरक श्री खेतेश्वर भगवान की पुण्य ितथी ब्रहाधाम आसोतरा में िवशाल समाहरोह पूर्वक मनाई जाती हैं। वैशाख शुक्ला छठवी को ब्रम्ह धाम पर हर जाित, सम्प्रदाय तथा वर्ग के लोग हजारो की संख्या में आकर उनकी बैकुठ धाम समािध पर पुंष्पांजंली अिर्पत करते हैं। श्रद्वालु ऐसा करके अपने को धन्य सा समझते हैं। दो तीन िदन का यह 'आध्यात्मिक मेला' प्रत्येक जाित तथा वर्ग को अनािदकाल की सस्कृित की प्रितमाओ को बटोरे वर्तमान युग िनर्माण की प्रेरणाओं से ओत-प्रोत दर्शन कराता है।
इस सम्मूण कार्यक्रम का संचालन भारतीय सस्कृित की एतिहासिक जाित का वर्ग श्री राजपुरोिहत समाज एक 'न्यास' रुपी संस्था द्वारा कराता है। राजपुरोिहज समाज के भारजीय सस्कृित के अन्तगर्त महत्पूर्ण योगदान के प्रित जगह स्वामी िववेकानन्दजी ने िलखा है-भारत के पुरोिहतों को महान बोिद्वक और मानिसक शिक्त प्राप्त थी। भारत वर्ष की आध्याित्मक उन्नित का प्रारम्भ करने वाले वे ही थे और उन्हौने आश्चर्यजनक कार्य भी संपन िकया। वर्तमान में इस आश्चर्य जनक दर्शन का जीता जागता दर्शन ब्रहा धाम आसोतरा हैं। जहॉं ब्रहा सािवत्री को संग-संग िवराजमान करके ब्रम्हाजी के पिरवार की प्रितमाए प्रितष्ठत की गयी। िजनके आपस के श्रापो का िवधान तोडकर िफर से नए प्रेरणा का मार्ग दर्शन कराया । िजनको वर्तमान में हम कोिट-कोिट शत वन्दन् करते।